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कविता

नया साल

के. सच्चिदानंदन


एक काँपता हाथ बदलता है कैलेंडर
घूमता है एक रथ का पहिया छितराता खून
कवि अपना काम आसानी से करता है
घंटियाँ घनघनाती हैं मोमबत्तियों के प्रकाश में सहमी
फीकी कोमल लालसाएँ बिना कटे केक के सामने
आस्तिक मनाता है नया साल

अमूर्त कलाकार के बिना तारीख और महीनों के
पंचांग में है रंगों का अत्याचार
हिजड़ों की गली में
नया साल आता है हिजड़े के रूप में
एक रुपये के मैले नोट पर अशोक का दयालु स्तंभ
सड़क की वेश्या को इतिहास सिखाता है

दुखते हुए पैरों से मैं घुसता हूँ नए साल में
रात-भर अंगूरों को पैरों से मसलकर रस निकाल
नींद में की शराब भरता हूँ चार प्यालियों में
एक प्याली प्यार के लिए जिसे मैंने देखा सिर्फ भद्दे कपड़ों में
एक प्याली पुरखों के लिए, उजले सफेद वस्त्र पहने
जिसने हमें धकेला कठिनाई में
एक प्याली क्रांति के लिए, जो फिसलती रही छोटे-छोटे हाथों से
यह प्याली भावी पीढ़ियों के लिए, जिन्होंने नहीं खोये हैं अब तक सारे सपने

दोस्तो आओ, आओ बच्चो
इस जर्जर मेज के गिर्द बैठो, वाल्मीकि जितनी पुरानी
मेरे साथ खाओ यह तुच्छ रोटी, जो बनाई मैंने शब्दों से
दुस्वप्नों की खमीर डालकर

पियो यह कड़ुआहट से बुदबुदाता प्याला, मुक्ति के देवता के नाम, अजन्मे
पियो यह ठंडा हुआ जा रहा है

(अनुवाद : राजेंद्र घोड़पकर)

 


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